परिचय
कृष्ण जन्माष्टमी , जिसे "गोकुलाष्टमी" (gokulashtmi) के नाम से भी जाना जाता है , भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे , इस दिन धरती वासियों ने भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्णा का जन्म उत्सव बड़ी धूम से मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षत कंस के वध के लिए और धरती पर धर्म की स्थापना धरती पर अवतार लिया था |
जो हिन्दू धर्म में सबसे अधिक पूजनीय देवताओं में से एक है ।
Date (तिथि) :- यह त्योहार भाद्रपद ( अगस्त - सितंबर ) के महीने में कृष्ण पक्ष के आठवें दिन (अष्टमी) को मनाया जाता है। इस साल यह त्यौहार 26 अगस्त 2024 दिन सोमवार मनाया जाएगा।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बारे में जाने :
श्री कृष्णा का जन्म मथुरा में देवकी और वासुदेव के यहां हुआ एक जेल में हुआ था । जहा उन्हें देवकी के भाई कंस ने बांधी बना रखा था।
दिव्य भविष्यवाणी : यह भविष्यवाणी की गई थी कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा इसके कारण कृष्ण का जन्म हुआ और कंस के क्रोध से उनकी रक्षा के लिए वासुदेव को यमुना पार गोकुल की यात्रा करनी पड़ी है और एक अन्य बालिका को वापस मथुरा ले आते हैं , वो बालिका कोई और नहीं वास्तव में मां जो बालिका के रूप में आई थी, जब कंस शिशु को करने का प्रयास करता है तब मां दुर्गा प्रकट हो जाती है , और चेतावनी देती हैं कि उसके मृत्यु का काल इस राज्य पर आ चुका है। यह बोलकर मां दुर्गा का विलोप हो जाती है ।
यशोदा के साथ आधुनिक काल के मथुरा के पास पलते बढ़ते हैं। इन पौराणिक कथाओं के अनुसार, कृष्ण के दो भाई-बहन भी रहते हैं,बलराम और सुभद्रा । कृष्ण के जन्म का दिन जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
जन्माष्टमी में व्रत और पूजा कैसे करें (Janmashtami me vrat aur Pooja kaise kare) :
पूजा की विधि : कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा की विधि बहुत महत्वपूर्ण क्योंकि लाडू गोपाल का जन्म सभी तैयारियां का केंद्र बिन्दु है। यह सुनिश्चित करने के लिए की आप इस पूजा का पूरा लो उठा सकें। हमने जन्माष्टमी की पूजा की विधि प्रधान की है:
- सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- रात्रि में पूजा की तैयारी श्री कृष्ण के पालने को सजाकर शुरू करें तथा मंदिर को गंगाजल से साफ करें।
पूजा शुरू करने के लिए ध्यान का पालन करें। भगवान कृष्ण की मूर्ति को आदरपूर्वक पालने पर रखें। अगर आपके पास पालना नहीं है, तो आप लकड़ी की चौकी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
भगवान के चरणों में जल चढ़ाना पाद्य कहलाता है। भगवान को अर्घ्य अर्पित करें।
- आचमन करें, जो भगवान को जल अर्पित करने और फिर उसे पीने का कार्य है।
- भगवान के स्नान समारोह को संपन्न करने के लिए, मूर्ति पर पंचामृत की पांच सामग्री डालें: दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल।
- पांचों सामग्रियों को इकट्ठा करें, फिर बाद में उन्हें प्रसाद के रूप में उपयोग करके पंचामृत तैयार करें।
- मूर्ति को नए वस्त्र और सामान से सजाएं जिसे देवता का श्रृंगार कहा जाता है।
- भगवान को पवित्र जनेऊ अर्पित करें। फिर भगवान पर चंदन का लेप लगाएं।
- मूर्ति को मुकुट, आभूषण, मोर पंख और बांसुरी से सजाएं।
- भगवान को फूल और तुलसी के पत्ते अर्पित करें। धूपबत्ती और तेल का दीपक जलाएं।
- भगवान को माखन और मिश्री का भोग लगाएं। भगवान को नारियल, सुपारी, हल्दी, पान और कुमकुम से बना ताम्बूलम भेंट करें।
- भगवान के सम्मान में कुंज बिहारी की आरती गाएं और फिर परिक्रमा करें।
- अपने हाथ जोड़ें और प्रभु से प्रार्थना करें कि वह आपको और आपके परिवार को सभी विपत्तियों से सुरक्षित रखें।
कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत की विधि
कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत में फलाहार खा सकते है , पर आन ग्रहण नहीं कर सकते है, कई लोग इस व्रत को 12 बजे के बाद ही खोलते हैं, तो कई इस व्रत का पालन अगले दिन सूर्य उदय के बाद करते हैं।
सुबह सर्योदय से पहले उठकर स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है । फिर श्री कृष्णा भगवान की पूजा की जाती है, पूरे दिन मन ही मन में राधा - कृष्ण के नाम का जाप किया जाता है । दिन में फल खा सकते हैं फिर रात 12:00 की पूजा से पहले स्नान करे स्वच्छ वस्त्र धारण करें ,रात में विधि विधान से कान्हा की पूजा करे और उनकी आरती उतार कर भोग लगाए फिर व्रत का प्राण ले।
व्रत के नियम :
- जन्माष्टमी व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
- जन्माष्टमी व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए.
- जन्माष्टमी का व्रत उसी दिन रात 12 बजे के बाद या फिर अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना चाहिए.
- इस दिन श्री कृष्ण भगवान के मंदिर जरूर जाना चाहिए.
- इस दिन सुबह और रात में श्री कृष्ण भगवान की विधि विधान पूजा करनी चाहिए.
- जो प्रसाद भगवान को अर्पित करें। उसे ही ग्रहण करके व्रत खोलना चाहिए.
- व्रत रखने वालों को दिन में सोना नहीं चाहिए.
- किसी को अपशब्द नहीं कहने चाहिए.
कृष्ण जन्माष्टमी का मुख्या भोग किया है? (krishna janmashtami ka mukhya bhog Kiya hai ) :
जन्माष्टमी के दिन शुद्ध मक्खन या माखन में मिश्री का भोग लगाने से भगवन श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
कहते है की श्री कृष्ण की कृपा से भक्त की हर मन की इच्छा पूरी होती है ।
शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्णा बाल अवस्था में गोपियों के घर से माखन चुरा कर खाते थे । इस लिए भगवान श्री कृष्ण को माखन चोर भी कहा जाता है।
जन्माष्टमी उपभोग में तुलसी दल ,फल, मक्खन,मिश्री,मखाने मिठाई, मेवे और धनिये की पंजीरी को जब शामिल किया जाता है।
दही हांडी (dahi handi) : दही हांडी एक लोकप्रिय और प्राचीन खेल है , जो जन्माष्टमी के दिन खेला जाता हैं , विशेष रुप से महाराष्ट्र में , जहां युवा दही से भरे घड़े को फोड़ते के लिए मानव पिरामिड बनाते है , जो कृष्ण के मक्खन के प्रति प्रेम का प्रतीक है ।
मंदिरों और घरों की सजावट : मंदिरों और घरों को खूबसूरती से सजाया जाता है , और बाल कृष्ण की मूर्तियों को नए कपड़े और गहनों से सजाया जाता हैं।
रीति रिवाज और अनुष्ठान :
झूला उत्सव : झूला उत्सव के पालने को सजाए जाते है , और उन पर बाल कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है ,जो उनके जन्म की खुशी का प्रतीक है।
रासलीला : गोकुल के कुछ क्षेत्रों में , कृष्ण के जीवन , विशेषकर उनके बचपन के प्रसंगों का नाटक में अभिनय किए जाते है ।
जाप और गीत : भक्तगण "हरे कृष्ण " का जाप करते है और भक्ति गीत गाते हैं , भगवान कृष्ण के प्रेम और महिमा में डूब जाते है ।
श्री कृष्ण के जीवन से हमें किया शिक्षा मिलती है? :
कृष्ण का जीवन धार्मिकता ,भक्ति और धर्म ( कर्तव्य) के महत्व के मूल्य को सीखता है । भागवत गीता में उनकी शिक्षाएं हिंदू दर्शन की आधारशिला बानी हुई है।
महाभारत में भूमिका : कृष्ण ने महाभारत में एक महत्व भूमिका निभाई, विशेष रुप से अर्जुन के सारथी और मार्गदर्शन के रूप में , गहन आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते है ।
क्षेत्रीय विविधताएं :
उत्तर भारत (north India) : मथुरा और वृंदावन में जुलूस, झांकियां और रासलीला के प्रदर्शन के साथ भव्य उत्सव मनाया जाता है ।
दक्षिण भारत (south india) : तमिलनाडु में भक्त अपने घर के प्रवश द्वारा से लेकर प्रार्थना कक्ष तक कृष्ण के छोटे-छोटे पद चिन्ह बनाते हैं जो श्री कृष्ण के आगमन का प्रतीक है।
पश्चिम बंगाल ( west bengal) : इस दिन को नंदोत्सव के रूप में मनाया जाता है जिसमें कृष्ण के बाल पिता नंद महाराज जी की खुशी मनाई जाती है।
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